Friday, July 16, 2010

खामोश विदाई

देखते ही देखते फिल्मी गीतों से आंचल और लाज जैसे शब्द कितनी खामोशी से विदा हो गये!

Thursday, July 1, 2010

सहजता प्रेम सिखाती

कहा गया है कि विद्या ददाति विनयम्, लेकिन आज व्यावहारिक जीवन में ठीक इसके उल्टा दिखायी देता है। आज लोग मानों विद्या (शिक्षा) के मद में उछलकूद करते दिखायी देते हैंऔर उस उछलकूद में वे ऐसा आचरण करने लगते हैंजो न सिर्फ शिक्षा के मानदंड के लिहाज से उचित नहीं लगता बल्कि मानवता के लिहाज से भी शोभनीय नहीं लगता, क्योंकि मनुष्य को प्रकति ने स्वभावत: सहजता प्रदान की है। वह भूल जाता है कि शिक्षा सहजता सिखाती है और सहजता प्रेम लेकिन इसके विपरीत वह दम्भवश अकड़ जाता है और फलस्वरूप विद्या (नम्रता)़ से दूर अविद्या (अहं) के नजदीक चला जाता है। यह प्रश्न मन में उठने लगता है कि क्या यह आर्ष वाक्य सिर्फ पुस्तकों तक सीमित होकर अपनी प्रासंगिकता खो बैठा है? तब काफी तकलीफ होती है मन में। तब प्रश्न उठने लगता है कि क्या शिक्षा अपना वास्तविक अर्थ खोने लगी है। जिस वृक्ष में फल होते हैं वह झुका हुआ होता है। जिस नदी में गहराई होती है, उसकी धारा उच्छृंखल नहीं होती। फिर हम शिक्षित होने के बावजूद अहंकार से भरपूर उच्छृंखल आचरण क्यों करने लगते हैं? क्यों हमारे विचार और आचरण में जमीन-आसमान का फर्क होता है?

Saturday, June 26, 2010

मेरे विचार से

मेरे विचार से गीत आनंद की परम अभिव््यकित होते हैं। जब व्यक्ति अति आनंद में रहता है तो गाने लगता है भले ही वह जबान से गाये या दिल ही दिल में गुनगुनाए

Friday, June 25, 2010

शुक्रिया

दोस्तो जल्द ही अपनी नयी टिप्पणियों के साथ मिलता हूं। आपने रुचि दिखायी, शुक्रिया।

Saturday, June 19, 2010

गीत ही जीवन

जो गा नहीं सकता वह सच्च्चे अर्थों में जी नहीं सकता, ऐसा मुझे अक्सर लगता है। आवाज चाहे जैसी हो पर गाओ और जियो।